उनकी यादें
विचलित कर देती है उनकी यादें कभी मुझको।
नींद उड़ा कर ले जाती है,सोने नहीं देती मुझको।।
पता नहीं लग पाता है,कहां ले जाती है मुझको।
करवटें बदलती हूं सलवटे ही दिखती हैं मुझको।।
शाम से ही आने लगती है उनकी यादें मुझको।
खोलने द्वार जाती हूं,आहट जब होती मुझको।।
कब यादों का मिलन होगा पता नहीं मुझको।
अगर मिलन नहीं हुआ तो दुख होगा मुझको।।
दिल मसोस कर रह जाती मै जब यादे आती मझको।
कैसे समझाऊं इस दिल को बताओ तो कोई मुझको।।
उनकी यादें रहेगी जब तक तब तक रुलाएगी मुझको।
सबर का बांध टूट रहा है कोई दिलासा दे तो मुझको।।
घिरती है घनघोर घटाएं जब उनकी यादें सताती हैं मुझको
सावन के महीने में तो यादे झकझोर कर देती हैं मुझको।
लिखता है रस्तोगी जब किसी की यादों को कलम से।
डूब जाता वह भी,किसी की यादों में कहता धरम से।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम