उदासीनता
कभी -कभी हम देख-समझ कर भी अनजान से बनते है,
वातावरण से अप्रभावित उदासीन होने की
चेष्टा करते हैं ,
शायद हमारी अंतर्मानसिकता हमें इसलिए
बाध्य करती है ,
या हमारी धारणाएं एवं पूर्वाग्रह हमारा व्यवहार निर्धारित करतीं है ,
अंतर्मन की संवेदनाओं को दबाकर हमारी क्रियाशीलता निष्क्रिय करतीं हैं ,
अंतस्थ भावनाओं पर लगाम लगा हमारी
स्थिति सहिष्णु कर देती है ,
हमारे अंतर्ह्रदय एवं अंतर्मन के मध्य एक विचित्र द्वंद उत्पन्न करती है ,
वर्तमान की उदासीनता एवं निष्क्रियता, भविष्य की हताशा एवं कुंठा को जन्म देती है।