उत्तम गुण है प्रेम का
परम पिता ने रच दिया, सत रज तम संसार
जीव और निर्जीव में, तीन गुणी है सार
रूप राशि रस गंध दे, दिया सुदृढ़ आकार
तीन गुणों से कर दिया, जीवन यह साकार
आत्म केंद्रित मत रहो, देखो नयन पसार
रचना हर एक व़ह्म की, नहीं कोई निसार
नष्ट ना कोई रचना करो, यही है सृष्टि आधार
उत्तम गुण है प्रेम का, करो सभी व्यवहार
सुरेश कुमार चतुर्वेदी