उत्कर्ष
उमड़ के घटा घेर गई थी
धौली सी उस बदली को ,
बरखा की बूंदे जब टपकीं
कुछ राहत दी तब पगली को I
बिजली चमकी ,मेघ भी गरजे,
घने वो झुरमुट जो सरसराए
विपदा और संकट की आंधी
दुख के कारे बदरा छाए।
आशाओं का झरना झर गया
गवां के सब कुछ, क्या कोई पाए?
देख के सारे अत्याचारी ,
उसका दिल भी शायद दहला…..
नन्हा पुष्प खिला अंगना में
भेज दिया वह कोपल पहलाI
आजादी के स्वच्छंद विचार को
मिल गया सार्थक विमर्श
जीजिविषा का वो कारण
आज कहलाता है उत्कर्ष!!