उड़ान
उड़ान
उड़ान भरूं पतंग सी मैं मतवाली,चंचल
खो जाऊँ विस्तृत नभ के सिंदूरी अंचल
मेघों का आभास,सतरंगी धनक निहारूँ
बूंदों के दर्पण में निज को नित सवारूँ
मृदु-स्वप्न डोर लिए उड़ जाऊँ क्षितिज पार
अधरों को छू मादक कर दे मंद मंद बयार
हीरक से तारों की नगरी में कर लूँ बसेरा
उड़ पहुँचूँ उस छोर जहाँ न कोई तेरा मेरा
रेखा ड्रोलिया
कोलकाता