*उड़ान*
जा रहे हो तुम, सात समुन्दर पार
पर तुम लौट के ज़रूर आओगे
मुझे यूंही इंतज़ार में खड़ा पाओगे
मुड़ कर देखना एक बार या सौ बार ।
जाओ
जाओ तुम्हें जाना है, क्षितिज के पार
नई मंजिलों को पाना है, आसमान को छू जाना है
नई लहरो संग इठलाना है
नए पंख जो मिले हैं, तुम्हें तो उड़ ही जाना है ।
पर
तुम लौट के जरूर आओगे
मुझे यूंही इंतज़ार में खड़ा पाओगे
मुड़ कर देखना एक बार या सौ बार ॥
मंजिले
मंजिले नई हैं, पर रास्ता वही है।
जिस पर चले हो तुम, पहले भी कई बार
होकर टतस्थ, स्थिर, दृढ़ और अचल
आ चल, आगे देख क्षितिज इठलाता है
तुम्हें देख लालिमा फैलाता है ।
तुम फिर,
तुम लौट के जरूर आओगे
मुझे यूंही इंतज़ार में खड़ा पाओगे
मुड़ कर देखना एक बार या सौ बार ॥
पंख,
मिलें हैं पंख जो तुम्हें, उड़ने को
रखना सम्भाल इन्हें
समेट लेना दुनिया सारी
अपनी पलकों की छांव तले ।
फिर एक बार,
तुम लौट के जरूर आओगे
मुझे यूंही इंतज़ार में खड़ा पाओगे
मुड़ कर देखना एक बार या सौ बार ॥