ईमानदार पहल जरूरी
धरती मात समान – पृथ्वी माता की तरह होती है। इसे न केवल स्वीकार करना होगा, वरन् उसके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए एक ईमानदार प्रयास करने भी जरूरी होंगे।
दुनिया में ऐसा मानने वाले लोगों की कमी नहीं है कि जलवायु परिवर्तन हवा-हवाई की बातें हैं। ऐसा हौव्वा करके पर्यावरणवादी संगठन और कुछ गरीब देश धन ऐंठते हैं। कुछ ऐसा ही विचार रखते हुए हाल ही में दूसरी बार निर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित पेरिस सन्धि से पृथक हो चुके हैं।
हमें यह भलीभाँति समझ लेना होगा कि धरती माता की सेहत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है, तेजी से बिगड़ रही है। बाढ़, अकाल, सूखा, चक्रवात, भीषण गर्मी या सर्दी सहित सभी तरह के असन्तुलन भी जलवायु परिवर्तन की अराजक स्थितियों को अभिव्यक्त करते हैं और उन्हीं के दुष्परिणाम हैं।
विकास की कुछ कीमत पर्यावरण को अदा करनी पड़ी है। अंटार्कटिका के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। तितलियों, मधुमक्खी, मेढ़क, मछलियों, चिड़ियों, सरीसृपों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और कई विलुप्ति के कगार पर हैं। जंगल खत्म हो रहे हैं। पानी की कमी पड़ रही है। नदियों से आस टूट रही है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा काफी बढ़ जाने से अब साँस लेना दूभर होता जा रहा है।
जलवायु विशेषज्ञों की मानें तो अगर जल्द ही जलवायु परिवर्तन से निपटने की कोई ठोस कार्य योजना बनाकर यदि कार्यान्वित नहीं की गई तो मनुष्य नामक प्रजाति के विलुप्त होने की भी प्रबल सम्भावना है। आशय यह है कि धरती की सेहत से खिलवाड़ काफी नुकसान देह हो सकता है।
मनुष्य और पशु में मूलभूत अन्तर यही है कि पशु त्रासदी भरे दौर को कभी भूल नहीं पाता, जबकि मनुष्य को अप्रिय एवं त्रासद दौर को भूलने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। हाल के वर्षों में कोरोना वायरस ने करोड़ों की जानें ले ली। उस समय इंसान के लिए जिन्दा बचे रहना ही एक बड़ी उपलब्धि थी। तब विश्व राष्ट्रों ने लॉक डाउन का सहारा लिया। लॉक डाउन की वजह से उस बुरे दौर में लोग अपने परिवार से मिले। एक दायरे में रहकर सुकून की साँस लिए। सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई। वातावरण प्रदूषित होने से बचा। पर्यावरण संरक्षित हुआ। नकारात्मक कार्य प्रतिबंधित हुए। लेकिन फिर से मनुष्य अनावश्यक गतिविधियों से जुड़ कर पर्यावरण प्रदूषित कर रहे हैं, यह अत्यन्त दुःखद और अफसोसजनक है।
अखबारों में छप रहे खबरों पर गौर करें तो आज दिल्ली की हवा इस कदर प्रदूषित हो चुकी है कि साँस लेने योग्य नहीं रह गई है। चार-पाँच दशकों से धरती की सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ है और ना ही इस दिशा में कोई ठोस कदम ही उठता दिख रहा है। वास्तव में लोग पढ़-लिखकर भी क्यों इतने ना-समझ हो चुके हैं, यह समझ से परे है।
याद रहे, बूंद-बूंद से समुन्द भरता है और बूंद-बूंद उलीच कर समुन्द रीतता है। हमारा हर सतर्क कदम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बढ़े, हमारी यह कोशिश होनी चाहिए। धरती माता के स्वास्थ्य की चिन्ता करते हुए एक अच्छे सपूत की भाँति उनके उचित इलाज का प्रबन्ध करना हमारा पावन दायित्व है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
साहित्य और लेखन के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।