हे राम! तुम्हें शिरसा प्रणाम
जीवन-पथ, उनकी मंज़िल जो
भव-सागर, उनका साहिल जो
कर्ता-भर्ता-संहर्ता जो…
सारे जिनके, सबके है जो
क्षण-क्षण, कण-कण में रमते जो
सर्वेश्वर राम कहाते जो
उनका पुनीत ये परम धाम
इस पावन धरती को प्रणाम
उनकी इच्छा, उनकी माया
नगरी उनकी, मैं भी आया,
उनके दर्शन नयनाभिराम
पलकें भीगी, मन पूर्णकाम
दुनिया का सबसे बड़ा नाम
हे राम, तुम्हें शिरसा प्रणाम..
फिर-फिर प्रणाम, शत्-शत् प्रणाम…!
© अभिषेक पाण्डेय अभि