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4 Feb 2018 · 1 min read

—इस भरी जवानी मेंं—

दोनों किनारे डूब गए दिले-दरिया तूफ़ानी में।
ऐसी विरह की चोट लगी हाय!इस भरी जवानी में।।

सावन बदली घिर-घिर बरसे रस्ता देखें हैं साजन।
कैसे गुज़रेगी रात हिज़्र की इस भरी जवानी में।।

नागिन-सरिस रात अँधेरी मुझे डसने को आए ये।
धक-धक धड़के पागल दिल मेरा इस भरी जवानी में।।

इस ओर तड़फती हूँ मैं उस ओर मेरे सजनवा हैं।
दोनों ओर लगी आग बराबर इस भरी जवानी में।।

इन्तज़ार की हद से गुज़र कैसे बसर हो ज़िंदगी।
अस्थियाँ ज़िगर की जलती हैं इस भरी जवानी में।।

प्रीतम तेरे हिज़्र में धड़कता दिल ज्यों दरिया का पानी।
साहिल कहीं नज़र नहीं आ रहा इस भरी जवानी में।।

*********राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
********************************

Language: Hindi
197 Views
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