इस देश की हालत क्या होगी ?
पल पल पर यही सोच सोच,
मेरे मन में कसक सी उठती है,
सांसों की गति भी रूक रूक कर,
अति कातर स्वर में कहती है,
कुछ सोच जरा हे भारतवासी,
इस देश की हालत क्या होगी?
यहाँ लोकतन्त्र की छाया में,
नेता की नेतागीरी से,
इस राजनीति की माया में,
वोटों की सीनाजोरी से,
तेरा देश बन गया है रोगी,
इस देश की हालत क्या होगी?
यहाँ दीन हीन बलहीन हुआ,
क्षण-क्षण मँहगाई बढ़ती है,
लालची मुनाफाखोरों में,
बस धन लोलुपता पलती है,
हुआ कर्णधार भी सुखभोगी,
इस देश की हालत क्या होगी?
यहाँ धर्म नाम पर मानव सर,
कद्दुक सा कटता मिटता है,
और भारत माँ का वीर कुंवर,
इस स्वार्थ की बलि चढ़ता है
किस दिन ये कयामत कम होगी ?
इस देश की हालत क्या होगी ?
मिट रहा आज भाई-चारा ,
करते थे जिस पर सभी नाज,
आज सुलग रहा भारत सारा,
धर्म के ठेकेदार करते फसाद,
जन-धन की अति दुर्गति होगी,
इस देश की हालत क्या होगी?
अतः हे भारत की मनुज चेतना,
अब भी तू कुछ कर ले गौर,
वरना इस विस्त्रित जगती पर,
नहीं मिलेगा तुझको ठौर,
तेरी हालत बड़ी बुरी होगी,
इस देश की हालत क्या होगी ?
✍ – सुनील सुमन