इस तरहां बिताये मैंने, तन्हाई के पल
इस तरहां बिताये मैंने, अपने तन्हाई के पल।
इस तरहां रखा मैंने, खुद को जिंदा हरपल।।
इस तरहां बिताये मैंने——————।।
शर्म आती थी अपनों को भी, मुझको अपना कहते हुए।
दूर उनसे रहकर सींचता रहा, गुलशन अपना हरपल।।
इस तरहां बिताये मैंने—————।।
करना नहीं चाहते थे बात, मुझसे दौलतवाले।
उनकी बस्ती में रहकर, जिन्दा रखें ख्वाब हरपल।।
इस तरहां बिताये मैंने—————–।।
हाथ मिलाना चाहा जिससे, घर बसाने को अपना।
खोता रहा उन सबको मैं, लिखता रहा अपनी गजल।।
इस तरहां बिताये मैंने——————-।।
छोड़ आया मैं सभी को, प्यार नहीं किसी का मिला।
अश्को- लहू बहाता रहा मैं, मिल गई मंजिल इस पल।।
इस तरहां बिताये मैंने——————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)