इस्तीफा
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आज मैं खुश
भीड़ का अगुआ था
जलाई बसें–
ताकत दिखाई।
गालियाँ बकी–
भाषण सीखा।
देखा
हाथ जोड़ मनाती पुलिस
जाना विरोध की ताकत।
राजधानी से फोन आया
मिजाज पूछा
शाबासी दी
सत्ता के रास्ते की
गंध मिली‚
झलक दिखी।
आज मैं खुश।
धरना के दौरान
धरे गये
कारागार गये
मुलाकात हुई
माफिया था
दोस्ती गाँठा
बाहर आये
दलाल हुए
आश्वासन मिला
सम्पर्क साधा
आश्चर्य में खुली रह गयी आँखें
हरी झंडी मिली
नेता हो गया
चाहे छुटभैय्या।
बड़ा होना तो छोटे से होता है शुरू।
अब ताकत थी–
भीड़ जुटाया
हंगामा करवाया
बड़े नेता जी ने पीठ थपथपाई।
कारागर की दोस्ती परवान चढ़ी।
जमानत का बन्दोबस्त हो गया।
बड़े नेता जी के चुनाव में झंडा उठाया।
खरीद फरोख्त करके मत डलवाया
जमानती श्ख्स से
पटाखे फोड़वाया।
नेता जी के जीतने का श्रेय
मुझे भी मिला।
राजनैतिक हलके में पहचान मिली
कितनी सारी पार्टियाँ
लालायित हुईं मेरे लिए
टिकट की बाढ लगी।
मैं राजनेता हो गया।
मेरा प्रश्न –
क्या मेरे पास राजनेता होने की
कोई योग्यता थी
मैं जानता हूँ‚नहीं थी।
न होगी कभी।
और इस देश का भविष्य बचाने के लिए
अतः मैंने इस्तीफा दे दिया।
और मैं जहाँ से आया
वहाँ मजबूरी थी
उससे ज्यादा हताशा
जैसे खत्म उम्मीदें।
मेरे साथ लोभ था‚
लालच और लिप्सा
और मेरी महत्वाकांछाएँ
मैं हो गया उनका पूजनीय
किन्तु मैं उन्हें पूज्य नहीं
सकता था बना
क्योंकि इसके लिए
सिर्फ संरक्षण ही नहीं
संरक्षण से बड़ा
चाहिए था संघर्ष।
अब मैं उस संघर्ष के दलदल से
निकल आया था बाहर
बदल गयी थी मेरी दिशा व दशा।
मैं खुद अपने सामने
प्रश्न सा खड़ा गया हो।
मुझे मजा आने लग गया
खुद की हैसियत बढ़ाने में।
मैं मेरा संर्घष ही भूलने लगा।
होने लगी मुझे ग्लानि
उस संर्घष को
बचाना मेरा कत्र्तव्य था
और
इस देश का भविष्य बचाना
मेरा धर्म
उस संर्घष को बचाने के लिए
अतः मैंने इस्तीफा दे दिया।
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अरूण कुमार प्रसाद‚पडोली