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1 Aug 2021 · 1 min read

इसी अरण्य में

■अरविन्द श्रीवास्तव

मैं अटकलों के बाजार में आ गया हूँ..
धमनियों में दौड़ते प्रेम को
किसी ने अगवा कर लिया है
यहां टिकने के लिए
रोज़ दिखाने पड़ते हैं नए-नए करतब
यहां सांस संगीनों के साए में चलती है
यहां सपने देखना
शिकारी आंखों में धूल झोंकने सा है
यहां नेह के खिलाफ हरवक्त
रची जाती है साजिशें
तिलिस्म के अंदर कई कई तिलिस्म !
करूँ क्या ?
इस महानगर की शुरूआत
इसी अरण्य से होती है..
★★

Language: Hindi
1 Comment · 178 Views
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