इश्क के सात मुकाम
इश्क के सात मुकाम
दिल्लगी थी पहली बात,
जब नजरें मिलीं और दिल हंस पड़ा।
छोटे से मजाक में, हंसी में खो गया,
कुछ और नहीं बस दिल्लगी थी, प्यार की राहों का पहला पता।
उंस हुआ जब दिल जुड़ा,
चाहत की राहें दिल ने पकड़ लीं।
एक दूसरे की बातें, हंसते हंसते बीत गईं रातें,
दिलों में धीरे-धीरे प्रेम का रंग चढ़ने लगा,
उंस के मुकाम पर इश्क ने अपना पहला कदम रखा।
मोहब्बत जब हुई तो दिल तड़पा,
हर लम्हा उसका ख्याल आया।
चांदनी रातें, बेताबी के साथ गुज़रीं,
उसके बिना दिल ने चैन न पाया,
मोहब्बत की गहराई में इश्क और गहरा गया।
अकीदत में झुका सिर,
उसकी हर बात, हर आदत पूजनीय हुई।
उसकी तस्वीर, उसकी यादें,
दिल की हर धड़कन में बसी,
अकीदत ने इश्क को इबादत का मुकाम दिया।
इबादत में था सिर्फ वो,
हर सास में उसकी बंदगी थी।
दिन-रात उसके ख्याल में गुज़रे,
जैसे इश्क खुदा की इबादत हो गया,
इबादत में इश्क की नज़रें सिर्फ उस पर टिक गईं।
जुनून था जब दिल बेखुदी में डूबा,
हर हद से परे, हर दर्द से आगे बढ़ा।
उसके बिना ये जहां बेमानी सा लगने लगा,
जुनून में इश्क ने हर हद पार कर दी,
अब इश्क सिर्फ जुनून बन गया।
आखिर में आया मौत का मुकाम,
जहां इश्क ने अपनी अंतिम मंजिल पाई।
मौत से भी बड़ी थी उसकी चाहत,
इससे पार होकर इश्क ने अपनी पराकाष्ठा को छुआ।
मौत में ही इश्क का पूरा होना था,
इश्क के सात मुकामों में मौत आखिरी थी,
जहां दिल को सुकून मिला, इश्क ने अपनी आखिरी मंजिल पाई।
इश्क के इन सात मुकामों में,
दिल ने हर दर्द, हर खुशी देखी।
दिल्लगी से शुरू हुआ सफर,
मौत पर आकर खत्म हुआ,
लेकिन इश्क का ये सफर अनंत है,
हर दिल की कहानी में, इश्क का सफर कभी नहीं रुकता।