इश्क का इंसाफ़।
तुझको लेकर ये दिल अक्सर बगावत करता है।
पर ये नफ्स है मेरा जो इसकी हिफाज़त करता है।।1।।
हैरां हूं परेशां हूं जानें क्यों ये सुनता नहीं है मेरी।
पर जानता हूं दिल सभी की खिलाफत करता है।।2।।
तू दूर जब गया तो लगा अब सब ठीक हो गया।
पर ये दिल है तेरे नाम की ही तिलावत करता है।।3।।
यूं तो ये तन्हाईयां अब अच्छी लगने लगी थी हमें।
पर तेरे नाम पे दिल अक्सर ही शरारत करता है।।4।।
मैं खुदको भुला हूं और सबको ही भुला दिया है।
रिश्तों में अब हर कोई हमसे शिकायत करता है।।5।।
तड़पाकर देखा रुलाकर देखा पर ये मानता नहीं।
तेरी खातिर मेरा ये दिल मुझसे अदावत करता है।।6।।
हश्र में ही तेरी बेवफाई का हिसाब मांगेगा ताज।
यूं इश्क का इंसाफ़ कहां कोई अदालत करता है।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ