इश्क़
तेरे इंतज़ार में जागती इनआँखों को देखा है,
अश्क-ऐ- गुहर से भरी महो -अंजुम की नज़रों ने।
और ज़रा सी आहट पर तपते फर्श पर उरियां पैरों,
से दौड़ते हुए देखा है आसमां के आफताब ने ।
तेरे लिए फूलों की माला बनाती घायल उंगलिओं ,
को देखा है तेरे ही बाग़ के काँटों और कलियों ने ।
मगर मुहोबत में तेरी शैदा हुए दिल को ऐ संगदिल !
देखा नहीं सिर्फ तेरी ही बेपरवाह नज़रो ने।