*इश्क़ से इश्क़*
सिर्फ़ सच लिखने की क़सम ली है
मेरे हाथों में जबसे ये कलम ली है
जाने क्यों कहते हैं वो पागल मुझे
मैंने तो बस इश्क़ की पैरवी की है
रात को रात और दिन को कहा दिन
मैंने कहां किसी की बुराई की है
फिर भी दर्द हो रहा है न जाने क्यों उन्हें
जिन्हें लगता है की उनकी ही धुनाई की है
इश्क़ से इश्क़ है हमको तो
बता दो उन्हें कि मैं कोई आवारा नहीं
इश्क़ करते थे जो खुद छुपते छुपाते
आज उन्हें इश्क़ की बात सुनना भी गवारा नहीं
जो होते कुछ और हैं लेकिन दिखाते हैं कुछ और
ये समस्या उनकी है, मेरी नहीं
कहता हूं जो मैं इश्क़ के बारे में
ये दास्तां इश्क़ की है, कोई समझाओ उसे, तेरी नहीं
सुना था इश्क़ का दुश्मन है ज़माना
जानता नहीं था उसको तो इश्क़ की बात से भी परहेज़ है
दिखावा करने के लिए वो भी करते हैं इश्क़ का विरोध
जिनका जीवन ही इश्क़ की दस्तानों से लबरेज़ है
महबूबा के इश्क़ में ज़माने से भिड़ जाते हैं जो
है ये ताकत इश्क़ की जीत जाते हैं वो
हमने तो इश्क़ किया है इश्क़ से ही
जो सोचते हैं हम हार जाएंगे, पागल है वो।