इल्म़
कौन कब किसका हुआ है,
सबका अपना किया करा है,
जिसको अपना हमने कहा है,
वो भी गैरों का हुआ है,
साथ है तो वो भी पल भर का हुआ है,
ज़िंदगी भर कौन किसका हुआ है,
अकेले ही आए थे, अकेले ही जाना है,
कश्मकश भरी ये जिंदगी गुज़री,
देर से ये हमने पहचाना है,
अपनी खुशी को भूल,
दूसरों की खुशी को हमने अपनी ख़ुशी माना है,
पर दूसरों नेंअपनी खुशी में शामिल हमें,
बे-खु़द ही जाना है,
जब से हमें ये इल्म़ हुआ ,
हमने अपनी हस्ती को पहचाना है।