इबारत अमन की
आग हर तरफ लगी है हर देश जल रहा है
फितरत से इंसान की चैन ओ अमन खो गई है
गर अमन ओ मोहब्बत है इंसा की फितरत
तो फिर क्यों ये सारी कायनात जल रही है
चंद सिक्के ही इंसान का ईमान बचा अब
दांव पर उसने अपना सब कुछ लगाया है
शर्मसार हो रही सरेबाजार इंसानियत आज
फितरत में हमारी इंसानियत मर गई है
हर तरफ जुल्म और बेबसी का है आलम
इंसान ही इंसान के लहू का प्यासा हो चला है
उसूल ओ तालीम कहां से कहां ले आए हमको
चैन ओ अमन जिंदगी से बेदखल हो गया है
रब की एक बेशकीमती नेमत है इंसान
फिर क्यों ये आपस का लड़ना झगड़ना है
सरपरस्ती अमन की है फितरत तुम्हारी
इबारत अमन की नई तुझको गढ़ना है।
(इति)
इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
9425822488
(मौलिक और स्वरचित)