इन हसरतों से कह दो ….
इन हसरतों से कह दो की न मचलें बेवज़ह ,
मैने इन्हें अक्सर दिलों में टूटते हुए देखा है।
बुझते देखें हैं ख़्वाब चश्म-ओ-चिराग की मानिंद ,
हर एक अक्स धुएं में बदलते हुए देखा है।
मुझे नहीं मालूम की क्या होती है ख़ुशी ?
तबसुम को मैने मायूसी में बदलते देखा है।
मेरा दिल ना हासिल कर सका सुकून जरा सा ,
ज़हन में तूफान उठाते कशमकशों को देखा है।
बहारों का आगाज़ न हो सका और यह अंजाम ,
मैने क़िस्मत को दरवाज़े बंद करते हुए देखा है।
मेरी आरज़ूएं मिन्नतें कर कर खुदा से हार गयीं ,
मैने ज़िंदगी को तन्हाईओं में सिसकते हुए देखा है।
मैं रिश्तों की डोर को मजबूती से ना थाम सकी ,
मैने गहरे प्यार को भी नफरत में बदलते देखा है।
यह बेचैन उलझी हुई सर्द आहें, सांसों पर पहरा !
“अनु” ने रूह को आज़ादी के लिए तड़पते देखा है।