इन्द्रिय जनित ज्ञान सब नश्वर, माया जनित सदा छलता है ।
इन्द्रिय जनित ज्ञान सब नश्वर, माया जनित सदा छलता है ।
बिछा मोह का ताना-बाना, मानव इसमें क्यों जलता है।
मृणमय जीव ब्रह्म है चिन्मय, अणु -कण में उसकी सत्ता है-
काल प्रभंजन, तृणमय तन को, कब ले उड़े, पता चलता है?।
-लक्ष्मी सिंह