इत्तिफाक या कुछ और
उस दिन मयंक बहुत परेशान था। उसने अब तक ना जाने कितनी फोन कॉल्स और मैसेज कर डाले थे लेकिन उनका कोई जवाब नही आया था। फलक का फोन ऑफ़ था। मयंक को काफी गुस्सा आ रहा था लेकिन फिर उसने एक पल के लिए ये भी सोचा कि हो सकता है वो किसी परेशानी में हो क्योंकि फलक उसके फोन और मैसेज का उत्तर तुरन्त ही देती थी भले ही वो कितनी ही व्यस्त क्यों ना हो।
तमाम तरह के अनचाहे सवाल उसके जेहन में उठ रहे थे। किसी शख्स की अहमियत, जिसे आप खुद के बिल्कुल करीब मानते हैं, क्या होती है, आज उसे इस बात का आभास हो रहा था।अब समझ आ रहा था कि छुट्टियां खत्म होने और उसके वापस लौटने के चार-पाँच दिन पहले से ही मम्मी की आँखें नम क्यों होने लगती थीं। फिर कब होंगी छुट्टियां? अब कब आएगा तू? इस तरह के और भी ना जाने कितने सवाल सुनकर वो मम्मी पर बरस पड़ता था।
लेकिन आज इन्ही सवालों की यादें उसे अपनेपन का अहसास दे रहीं थीं। पहले तो मन में आया कि मम्मी को फोन कर ले पर थोड़ा सोचने-विचारने के बाद उसने इरादा बदल दिया। मम्मी बेवजह घबरा जाती ।
हर बार महीने के दूसरे शनिवार के लिए वो बहुत उत्साहित रहता था, ये दिन कुछ खास होता ही है। ऑफिस की आधे टाइम के बाद छुट्टी और फिर पूरा वक्त फलक से बात करते हुए बिताना। शाम को क़भी-कभी दोस्तों के साथ रेलवे स्टेशन की तरफ घूमने भी चला जाता था। पर आज का दिन थोड़ा अलग सा था। उसका किसी भी कम में मन नहीं लग रहा था।
आधे टाइम के बाद जब ऑफिस से छुट्टी हो गई और एक एक करके सब अपने घरों की ओर जाने लगे तो उसने भी अपना केबिन लॉक किया और कमरे की तरफ चल पड़ा। आज उसका दोस्त आकाश भी आफिस नही आया था। आकाश और मयंक काफी अच्छे दोस्त थे।
कमरे में आकर उसे और ज्यादा बेचैनी महसूस हो रही थी। वाशरूम से कपड़े बदलकर लौटा तो फोन की घण्टी बज रही थी, उसने लपककर फोन उठाया। होटल से फोन था, आज के लंच का ऑर्डर लेने के लिए। मयंक ने मना कर दिया, बोला- आज रहने दो, ऑफिस के काम से बाहर निकल रहा हूँ। बिल्कुल भी भूख नही थी उसे।
बेड पर आकर वो लेट गया।फलक की याद करते हुए किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। प्यार से फलक को वो जिंदगी कहता था।अगर मेरी जिंदगी मुझसे दूर चली गई तो, अगर उसे कुछ हो गया तो… इन ख्यालों ने उसकी आंखें नम कर दीं। उसने बीते दिनों को याद करने की कोशिश की ऐसा कुछ भी नही हुआ था जिससे उसे ये लगे कि फलक उससे नाराज हो सकती है।
शाम गहराने लगी थी। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा रहा था। सारी रात उसने करवटें बदलते हुए बिताई।बार बार फोन चेक करता रहा। सुबह उठकर उसने अपनी डायरी पढ़ी, न जाने क्या क्या लिखा था उसमें। पढ़ते हुए कई बार वो मुस्कुराया भी पर बन्द करते समय उसकी आंखे भींग गईं।
मन हल्का करने के लिए उसने आकाश को फोन किया। फोन उठाते ही आकाश ने लगभग चौंकते हुए कहा- यार आज कैसे याद किया मुझे? सब ठीक तो है ना! आज तो पूरा दिन तेरा फ़ोन कहीं और ही बिजी रहता है।
मयंक ने बनावटी हँसी हँसते हुए जवाब दिया- हाँ, सब ठीक है। कभी-कभी तुझ जैसे कमीने दोस्त को भी याद करना जरूरी समझता हूँ। आकाश जोर से हँसा। फिर मयंक ने उससे न आने की वजह पूछ और दोनों लगभग पन्द्रह मिनट तक बाद करते रहे।
फोन कट जाने के बाद मयंक फिर अकेलापन महसूस करने लगा। अभी तक उसने कुछ खाया भी नही था।आज गर्मी भी और दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा थी। उसने टाइम देखा अभी सिर्फ नौ बजे थे। अभी तो पूरा दिन बाकी था। अचानक उसके दिमाग में पता नहीं क्या आया? उसने अपना व्हाट्सएप खोला और फलक को मैसेज किया-” अगर 10 बजे तक हम दोनों के बीच कोई बात नही हो पाई तो फिर आज के बाद हम दोनों कभी बात नही करेंगे। कभी नही मतलब कभी नही। ओके मिस यू जिंदगी!”
उसका फोन अब भी ऑफ था। मैसेज भेज देने के बाद बहुत देर तक वह अपने निर्णय पर पछताता रहा। पहले तो सोचा कि मैसेज को डिलीट फ़ॉर एवरीवन कर दे लेकिन फिर उसे लगा कि वो इसी बहाने अपनी किस्मत आजमा कर देख ले।
मैसेज भेजने के बाद वो कमरे में चहलकदमी करता रहा और फिर बेड में जाकर लेट गया। फलक की तस्वीरें देखते-देखते कब नींद आ गई, उसे मालूम ही नही चला।
अचानक मैसेज आने की आवाज सुनकर उसकी नींद खुली। वो हड़बड़ा कर उठा। फोन उठाकर देखा । फलक का मैसेज था। उसने टाइम देखा। 9 बजकर 58 मिनट। उसके होंठों पर स्माइल आ गई। दोनों न जाने कितनी देर तक बात करते रहे। शिकायतें दोनों तरफ से थीं पर साथ ही साथ था दोनों का एक दूसरे पर और अपने रिश्ते पर एक अटूट विश्वास जो उन्हें उनके रिश्ते के बारे में आश्वस्त करता हुआ सा प्रतीत हो रहा था।
दोनों एक लंबे अरसे तक एक दूसरे से और खुद से भी एक ही सवाल करते रहे थे कि ये महज एक इत्तिफाक था या कुछ और?