इतिहास
इतिहासक अनुपम पन्नामे,
घटना भरल अछि अनेक।
करमौली मे रहि रहल छलि,
मदनी नामक पिलिया एक।।
भूखसँ वेकल बेचारी पिलिया,
चोरि करै छलि जूता।
देने जबाब छलै रानीकेर,
अपन शरीरक बूता।।
एक दिनआयल घर मे,
सहमेलु नवीन श्रीमान।
के छुअत हमर जूताकें,
हुनका छलनि वेश गुमान।।
उचित स्थान राखु जूताके,
मदनी लए चलि जाएत।
छुधा तृप्त नञि हेतै गरीबक,
रुचि रुचि भोग लगाएत।।
हमर बातके टारि महामन,
फोलिक’ जूता रखला।
आँखि मिरैत उठला भोरहिं तँ,
जूता के नञि देखला।।
पावि बुढ़ापा के ओ बेचारी,
व्याकुल घुमैत रहै छलि।
आहत तन आऔर मनके लए ओ,
अपन मृत्यु मनबै छलि।
नेना उकाठी लएक’ लाठी,
ओकरा नित ताड़ैत छल।
मारि खाय लाठी पीड़ासँ
नोर नित बहबै छल।।
भरि जवानी केलक फुटानी,
मद् मे मस्त रहै छलि।
देखितहिं चोर उचक्काके ओ,
पस्त रेवाड़ि करै छलि।।
गामक बाँसक सघन बीटमे,
पिलिया के छल डेरा ।
चामक जूता छल ओकरा लेल,
बनल दूध के पेंरा ।।
जूता चोरीके इ घटना,
कइक बेर पहिलों छल भेल।
सुनिक’गाँव कें वुद्धिजीवीगण,
नाना रंगकेर उपमा देल।।
केओ कहै छल चोरक काज थीक,
केओ कहै छल देवीक।
केओ कहै छल इ सभ किछु नञि,
इ थीक काज फरेवीक।।
गाँवमे किछु उपनयनक बरुआ,
छला बेस उताहुल भेल ।
करु उपनयन हमर यौ बाबू,
वर्षक नीक शुद्ध बीति गेल ।।
नगर खलीफा महेन्द्र मिश्रजी,
कुरहैरि कान्ह लेलनि सम्हारि।
गीत गबैत सभ पंचम सुरमे,
चलली सुहागिन नगरके नारि।।
बाँसक बीट मे जाय पहुँचलनि,
मंगल गीत समाप्त भए गेल।
पिलिया चाम चिबाबैत बैसल,
बहुतों जूता ढे़री भेल।।
जूता चोरी के सम्बन्धमे,
किंबदन्ती मिथ्या भेल।
धाड़-धाड़ सब कहलनि मिलिक’
पिलिया बीटसँ बाहर गेलि।।
बाँस काटि गृहनगर मे लाबि,
शीघ्रहिं मरबा ठाठल गेल।
सजबी दूधक दही पौरल,
ओरिकासँ घृत परसल गेल।।
होइत समाप्त उपनयनक भोज,
पिलिया पहुँचलि निज परम धाम।
ओकरा प्रति कृतज्ञ समाज अछि ,
लोक जपइए मदनीक नाम।।