इतना तराशेंगे खुद को
इतना तराशेंगे खुद को
शुद्धता से भर जाएंगे,
लाख कोशिशें करो ,
नहीं हम डर जाएंगे |
अभी जंग लंबी चलेगी
अभी कहां घर जाएंगे,
मुझे रास्ते से हटाने में
कई ठोकरें खड़ी हुई,
या हम इधर जाएंगे
या हम उधर जाएंगे,
मैं अब नहीं मिलूंगा
पहले से लिवास में,
मिलने को तरसोगे
इतना बदल जाएंगे,
हमारी जीत की जंग
खुदकी खुद से ही है
अब हम किसी से
क्या रेस लड़ाएंगे,
इतना घुमाया मुझे
छान ली मैंने दुनिया,
कितना भी भटके
किनारा कर जाएंगे
जब हम फतह…
करके घर आएंगे,
कई चेहरे जहन से
हमारे उतर जाएंगे,
संघर्षों की इमारतें
क्यों बदल जाएंगे,
बुजदिली हमारे
मिजाज में कहां…,
शिखर पा जाएंगे
या हम मर जाएंगे !!
कवि दीपक सरल