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31 Aug 2020 · 1 min read

इक ख़वाब ऑंखों को मेरे तर कर जाता है

इक ख़वाब ऑंखों को मेरे तर कर जाता है
ख़वाब के अंगनाई में तू ही तू नज़र आता है ।

देखे मुस्काए बात करे ख़वाब में तू प्यार लिखे
मैं हाँथ बढ़ाऊं तेरी तरफ़ तू दूर चला जाता है।

मैं साथ निभाती हूँ,पर बैठे ही रह जाती हूँ
और तुझ को कोई और बुला ले जाता है।

खोने से डरती हूँ, इस लिए तो चुप मैं रहती हूँ
पाने की सोचूं तो खुद की ओर हाँथ बढ़ जाता है।

मेरी ऑंख को जाना नींदें रुसवा कर गई है
मेरे पलकों पे भी हर पल तू ही तू इतराता है ।

मैं गीले शब के परछाईं से पूछूं तेरा नाम पता
वो हॅंस कर गांव चाॅंद का मुझे बतला जाता है।
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
4 Likes · 257 Views
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