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27 May 2022 · 1 min read

इक आस

परेशान हूं इस फरेबी शोर में
उठ नहीं पाता रोज भोर में
तड़पता बिलखता हूं यहां
कोई नहीं आता दिल के द्वार में

मन दुखी ही रहता है पूरे दिन
और रात आ जाती पूछे बिन
फिर नौकरी के वही किस्से
बस दिन कटते हैं गिन गिन

कुछ नया होने की आस लिए बैठा हूं
कुछ पल मैं भी यहां खास लिए बैठा हूं
उम्मीद इस दौर में कुछ तो सही होगा
आशा में मैं कई ख़्वाब पास लिए बैठा हूं

शिव प्रताप लोधी

Language: Hindi
1 Like · 180 Views
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