इंसा की फितरत
पाने की तुम को लिए तमन्ना
दरबदर मेरा दिल भटक रहा है
इजहार ए इश्क करने को तुमसे
बरसों से ये दिल मचल रहा है
तुम्हारी उल्फत का जाम पीकर
मेरी नजर भी बहक रही है
तुमको मुड़के जो देखा हमने
हंसी लबों पर बिखर गई है
मिली है जब से निगाहें तुमसे
दिलों की धड़कन बढ़ी हुई है
थामा है जब से दामन इश्क का
जिंदगी भी मेरी बदल गई है
सहर से शाम तक खयाल तेरा
ख्वाब में भी तेरी शकल है
छोटे से इस शहर में दिलबर
इश्क की चर्चा आम हो गई है
इंसा की फितरत तो है मोहब्बत
मुक्कमल ये जिंदगी हो गई है
पाया है जबसे दिलबर तुझको
फितरत मेरी भी बदल गई है
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्यप्रदेश)
9425822488
(स्वरचित एवं मौलिक)