इंसान और श्वान
छंद-चौपाई (माफनीमुक्त)
विषय: इंसान और श्वान
मन का दर्द जुबां पर आया।
दोनों ने मिलकर बतलाया।।
दुनिया की बेशर्मी देखो,
हम दोनों को है ठुकराया।।
दोनों मिलकर दर्द बांटते।
खुले गगन में रात काटते।।
आधी रोटी का टुकड़ा खा,
अपने हिय की आग पाटते।।
कैसा है बेदर्द जमाना।
इक दूजे का दर्द न जाना।।
धन्य धन्य है श्वान प्नान को,
दुखी दरिद्र को अपना माना।।
मानवता से पशुता अच्छी।
निभा रहा मानवता सच्ची।
अनुपम है इनकी यह जोड़ी,
लोग कर रहे माथापच्ची।