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14 Jul 2020 · 1 min read

इंसान और प्रकृति

इंसान को किस बात का गुमान है।
हर बात में रखता झूठी शान है।

नित्य बदल रहा प्रकृति के नियमों को,
क्यों खुद से ही बन चुका भगवान है?

खेलेगा इंसान गर प्रकृति से तो,
उसमें स्वयं उसका ही नुकसान है।

प्रकृति के स्वभावों को समझता नहीं,
छेड़ता हर पल अपना ही तान है।

उलझा है ये अपनी ही दुनिया में,
संकट का उसे तनिक नहीं भान है।

ज्ञान की सीढ़ी से छू ले बुलंदी,
पर प्रकृति के आगे ये नादान है।

यह प्रकृति कितना कुछ देती है हमें,
सच में वह जग में सबसे महान है।

Language: Hindi
1 Like · 6 Comments · 276 Views
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