इंसानी वज़ूद
ये पवन ये जमीं
ये खुला आसमां
ये पानी की बूंदें
ये सूरज की किरणें
ये तारों का जहाँ
ये चन्दा की चमक
ये सुबह दुपहर साँझ
ये रात औऱ सवेरा
किसका है आख़िर?
आख़िर किसका है?
ये तेरा है या मेरा है
ये उसका है फ़िर किसका है?
तू आख़िर कौन है?
तू ख़ुदा है क्या?
शहंशाह भी हो
आख़िर कब तक है?
देख ले तू क़द अपना
तू धूल भी है तू मिट्टी भी
कभी भूखा है
कभी प्यासा भी
कभी पासा है कभी तमाशा भी
तेरे जैसे औऱ भी हैं इक़ तू नहीं
तू हिस्सा है किसी कहानी का
वो कहानी जो लिखी जा रही है
वो कहानी जो सबकी लिखी जाती है
वो कहानी जो ख़ुदा लिखता है
अब करना है तो इतना कर
देख ले तू अभिनय अपना
डोर तेरे हाथों नहीं
कठपुतली है
कठपुतली है
कठपुतली है फ़कत
तू इससे ज़्यादा कुछ नहीं………
__अजय “अग्यार