इंसानियत का हिज़ाब गायब है
इंसानियत का हिज़ाब गायब है
अपनों का प्यार ग़ायब है
लूट रहे है इंसान यहां इंसानो को
आज इंसानो का ईमान ग़ायब है
बिक रहा है ईमान बाज़ारों में
बाज़ार से सच्चा इंसान ग़ायब है
बिक रहे है मुखोटें सरे आम
ख़ुदा का पयाम ग़ायब है
बिक रहा है झूठ यहाँ कचहरी में
आज सत्य का प्रमाण ग़ायब है
ज़फर हो रही है अन्याय की अदालत में
अदालत से सच्चाई की नाम ग़ायब है
नुमाइश हो जब हुस्न महिलाओं का
ज़िस्म से आज वस्त्र का नाम ग़ायब है
मर के भी जिंदा है इंसान इस ज़माने में
जिस्म से इंसानों के रूह का नाम ग़ायब है
जब व्यपार भी शिक्षा का होने लगे
तब शिक्षा से उस्ताद का नाम ग़ायब है
आदमियत ही भूल बैठा है इंसान
आदमी का आदाब गायब है
भूपेंद्र रावत
5।09।2017