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31 Oct 2022 · 1 min read

इंदिरा प्रियदर्शिनी

माता-पिता की वो लाडली थी
बचपन में नाजों से पली थी
विरासत में राजनीति मिली थी
स्वभाव से वो बड़ी भली थी.
विघ्नों की दौर आन पड़ी थी
दादा-पिता पर कहर पड़ी थी
क्रांतिकारियों की लहर बड़ी थी
देश-प्रेम की भाव भरी थी.
सदभावना की आधार थी वो
अदम्य साहसी अपार थी वो
सुनती नहीं ललकार थी वो
मर मिटने को तैयार थी वो.
उनकी गुणों की ना तोल थी
वो नारी रत्न अनमोल थी
वो निर्भयता की मिशाल थी
दृढ़ता उनकी वेमिशाल थी.
बाधाओं ना डिगा सकी थी
अवरोधों ना मिटा सकी थी
दर्द-विषाद अनेक सही थी
विश्व-क्षितिज पर वो उभरी थी.
व्यक्तित्व कहाँ है ऐसी क्षमता
जिसमें हो करुणा मानवता
ह्रदय में जिसकी हो राष्ट्रीयता
राष्ट्रप्रेम की हो व्याकुलता.
प्रियदर्शिनी इन्दिरा कहलायी
उनसे प्रेरणा सबने पायी
राष्ट्र पर अपनी जान लुटायी
रक्त का कतरा-कतरा बहायी.
राजनीति को नये आयाम
दिया शक्ति के रूप तमाम
अंग रक्षक ने ले ली जान
इन्दिरा कोटि कोटि प्रणाम.
भारती दास ✍️

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 337 Views
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