इंतेहा ए इश्क
एक बार देखकर भी फिर देखने की तमन्ना ,
उफ़ ! इस पैमाना-ऐ- दीदार में कुछ कमी सी है।
देखा तो तुझे ज़रूर खूब नज़र भर के मगर ,
जबसे है देखा इन आंखों में कुछ नमी सी है।
वायदा था तुमने किया और हमने इंतज़ार ,
महसूस होता है की हममे सब्र की कमी सी है।
ले चला वक़्त का कारवां जहाँ हम चलते रहे ,
पर वोह रफ़्तार कहाँ, जिंदगी कुछ थमी सी है।
यह इन्तेहा -ऐ -इश्क है तुम मानो या ना मानो ,
हो तो हमसे जुदा ,मगर तुममें कुछ बातें हमी सी है।