इंतज़ार
कहीं दूर जब दिन ढल जाये ,
प्रियतम के इंतजार में तरसी आँखें,
प्यासी की प्यासी ही रह जाये।
सोचती हूँ यकीन करूँ या न करूँ उस निर्मोही पर,
जो इस तरह दामन छुड़ाकर चला
जाये।
फिर भी न माने, देखा करे उसका ही रास्ता,
भला इस दीवाने दिल को कौन समझाए।
ना कोई वायदा,
और न ही कोई कसम,
एक चाहत के सहारे सारी जिंदगी गुजर जाए,
उसकी बातें, उसकी यादें और उसका ख्याल,
तन्हाईओं में दिल तो इसी से बहल जाए।
मगर सावन जब भी दे दस्तक मेरे आँगन,
मेरी आँखों में वो उतर के आ जाए।
निर्मोही है वो और थोड़ा कठोर भी,
वादा करके अक्सर भूल जाया करे,
जाने क्यों इंतजार करूँ मैं प्रेम दीपक जलाकर ,
जब भी दूर कहीं दिन ढल जाए।