Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Apr 2024 · 4 min read

*मुर्गा की बलि*

मुर्गा की बलि
हमारा देश आस्था और धार्मिक रीति-रिवाज का देश माना जाता है। लोग इस देश में इतने आस्थावान हैं, कि पत्थर जिस पर लिखा होता है फलां गांव,शहर या कस्बा इतनी दूर है, उसे भी हाथ जोड़कर प्रणाम कर करते हैं और उसके आगे माथा टेकते हैं। इसी प्रकार देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग प्रकार की प्रथाएं और रीति रिवाज पाए जाते हैं। देश के कुछ भागों में लोग अपने इष्ट देव को प्रसन्न करने के लिए मनुष्य और पशु पक्षियों की बलि चढ़कर उन्हें मार देते हैं। उनका मानना होता है, कि ऐसा करने से उनके इष्ट देव प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं। ऐसी प्रथाएं जिनका कोई औचित्य नहीं है, हमारे देश में विभिन्न भागों में होती रहती हैं।
अब से लगभग 20-22 साल पुरानी बात है। हमारा एक खेत हमारे गांव के दक्षिण में लगभग 3 किलोमीटर दूर है। उस खेत पर जाते हुए, जैसे ही गांव को पार करते हैं, एक चौराहा पड़ता है। कभी-कभी गांव वालों का कहना होता है, कि इस चौराहे पर ही गांव के कुछ लोग टोने-टोटके करते रहते हैं।
रात के लगभग 9-10 बजे होंगे, हमारे ही गांव के दो व्यक्ति जो भक्ताई सीख रहे थे, जिनमें एक का नाम कालीचरन था और दूसरे का सुरेश था। इस चौराहे पर लगभग 9-10 बजे, ये दोनों नव भगत चौराहे वाली देवी के लिए एक जीवित मुर्गा, शराब, पान अगरबत्ती, लाल कपड़ा कुछ प्याले इत्यादि लेकर पहुंच गए और उस चौराहे पर बैठकर शराब प्यालो में करके और पान इत्यादि को फैलाकर बैठ ही थे, कि सौभाग्य से उस दिन मेरे पिताजी भी उसी खेत से जो गांव से दक्षिण में तीन किमी की दूरी पर था, वापस लौट रहे थे। जैसे ही वह उनके कुछ करीब पहुंचे तो उन्होंने देखा चौराहे पर उजाला हो रहा था और कोई व्यक्ति मंत्रों का जाप कर रहा था। और उनके पास प्याले, शराब की बोतल अगरबत्ती और एक सफेद रंग का मुर्गा था जो उन्होंने अपनी गोद में पकड़कर बैठा रखा था। उस समय रास्ते में झुंड बहुत हुआ करते थे। इन झंडों को काटकर ही लोग अपने घर पर छप्पर बनाकर डालते थे। इन झुंडों से काटे जाने वाली, जिसे गांव में पतेल बोलते थे, उसी से छप्पर बनाया जाता था और सरकंडो से छप्पर के बत्ता बनाए जाते थे। मेरे पिताजी ने थोड़ी दूर से उन दोनों का यह करामात देखा तो वह तुरन्त समझ गए कि यहां कोई भक्त है, जो मुर्गे की बलि चढ़ाएगा। यह देखने के लिए कि यह मुर्गे को किधर फेंकेंगे, अनुमान लगाकर एक झुंड की बगल में छुपकर बैठ गए और उन दोनों का करिश्मा देखने लगे। वह मंत्रों का लगातार जाप करते रहे, फिर उन्होंने चौराहे वाले देवी को भोग लगाया और दारु (शराब) खुद पी गए और पान भी खुद खा गए। जब उन्हें नशा हो गया तो उनमें से एक ने मुर्गे की गर्दन और मुर्गे को पकड़ा और दूसरे ने नुकीला चुरा निकाला और तुरंत मुर्गे की गर्दन काट कर उसी दिशा में, जिस दिशा में मेरे पिताजी झुंड की आड़ में खड़े हुए थे यह कहते हुए फेंका,-“लै ले जा इस अपने परसाद को, यहां क्या लैने आये रई है।”यह कहते हुए इन दोनों ने जैसे ही मुर्गा फेंका तो वह पिताजी के पास ही जाकर गिरा। पिताजी ने तुरन्त मौके का लाभ उठाया और मुर्गे को उठाकर कुछ दूरी पर जाकर उस मुर्गे के पंखों को उखाड़ने(साफ सफाई करने) लगे। उन दोनों को इस बात का कुछ पता नहीं था, कि यहां कोई छुपकर हमारा कार्यक्रम भी देख रहा है।
अब दोनों नवोदित भगत मुर्गे को खोजने लगते हैं, लेकिन मुर्गा वहां हो तो मिले। काफी देर तक उन्होंने मुर्गे को यह कहते हुए ढूंढा कि,-” यार फेंका तो यही था, आखिर गया कहां?, आज तो सचमुच चौराहे वाली वाली ले गई दिखै है।”फिर वे दोनों काफी देर बाद खोजते-खोजते और यह कहते हुए,-” कहीं कोई जंगली जानवर तो नहीं ले गया है।” पिताजी के पास आए और पिताजी को देखकर वह घबरा गए। जब पिताजी ने उन्हें डरावने और मजाकिया अंदाज में डांटा। पिताजी की आवाज पहचान कर वे दोनों कहने लगे,-” यार हम तो सचमुच डर गए थे, कि मुर्गे को आज चौराहे वाली ले गई।”
फिर क्या था वे तीनों मुर्गे को लेकर वापस घर आ गए और उस मुर्गे को दोनों भगत जी ने पकाया और उन दोनों के साथ हमारे पिताजी ने भी, वह मुर्गा खाया। आज भी वह दोनों जब कभी पिताजी को मिलते हैं, तो हंसते हैं, कि यार वह बात सदा याद रहेगी।
आज भी हमारे समाज में ऐसी बहुत सी घटनाएं और रीति रिवाज अपनाये जाते हैं, जिनसे हमें कोई लाभ नहीं होता शिवा नुकसान के। इसलिए ऐसे कामों से सदैव दूर रहिए और लोगों को समझाइए कि इससे कोई लाभ होने वाला नहीं है। ऐसे बेकार कार्य से बचने के लिए एकमात्र उपाय हम सबको शिक्षित होना बहुत जरूरी है। अतः पढ़िए, आगे बढ़िए और ऐसे कामों से हमेशा दूर रहिए।

Language: Hindi
1 Like · 23 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dushyant Kumar
View all
You may also like:
गुरु चरण
गुरु चरण
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
वोट डालने जाएंगे
वोट डालने जाएंगे
Dr. Reetesh Kumar Khare डॉ रीतेश कुमार खरे
अमृत वचन
अमृत वचन
Dinesh Kumar Gangwar
गाँधी हमेशा जिंदा है
गाँधी हमेशा जिंदा है
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मन के भाव
मन के भाव
Surya Barman
इंतज़ार मिल जाए
इंतज़ार मिल जाए
Dr fauzia Naseem shad
याद  में  ही तो जल रहा होगा
याद में ही तो जल रहा होगा
Sandeep Gandhi 'Nehal'
श्रीराम अयोध्या में पुनर्स्थापित हो रहे हैं, क्या खोई हुई मर
श्रीराम अयोध्या में पुनर्स्थापित हो रहे हैं, क्या खोई हुई मर
Sanjay ' शून्य'
*सत्य की खोज*
*सत्य की खोज*
Dr Shweta sood
"अगर"
Dr. Kishan tandon kranti
23/77.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/77.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सह जाऊँ हर एक परिस्थिति मैं,
सह जाऊँ हर एक परिस्थिति मैं,
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
■ तुकबंदी कविता नहीं।।
■ तुकबंदी कविता नहीं।।
*Author प्रणय प्रभात*
🌷मनोरथ🌷
🌷मनोरथ🌷
पंकज कुमार कर्ण
काव्य का आस्वादन
काव्य का आस्वादन
कवि रमेशराज
******** प्रेरणा-गीत *******
******** प्रेरणा-गीत *******
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
हाँ मैन मुर्ख हु
हाँ मैन मुर्ख हु
भरत कुमार सोलंकी
आज़ादी के दीवाने
आज़ादी के दीवाने
करन ''केसरा''
रामपुर में दंत चिकित्सा की आधी सदी के पर्याय डॉ. एच. एस. सक्सेना : एक मुलाकात
रामपुर में दंत चिकित्सा की आधी सदी के पर्याय डॉ. एच. एस. सक्सेना : एक मुलाकात
Ravi Prakash
हे मेरे प्रिय मित्र
हे मेरे प्रिय मित्र
कृष्णकांत गुर्जर
कर ले प्यार हरि से
कर ले प्यार हरि से
Satish Srijan
अस्तित्व की ओट?🧤☂️
अस्तित्व की ओट?🧤☂️
डॉ० रोहित कौशिक
दोस्त को रोज रोज
दोस्त को रोज रोज "तुम" कहकर पुकारना
ruby kumari
एकाकीपन
एकाकीपन
Shyam Sundar Subramanian
"सफलता कुछ करने या कुछ पाने में नहीं बल्कि अपनी सम्भावनाओं क
पूर्वार्थ
कंधे पे अपने मेरा सर रहने दीजिए
कंधे पे अपने मेरा सर रहने दीजिए
rkchaudhary2012
💫समय की वेदना💫
💫समय की वेदना💫
SPK Sachin Lodhi
यादें मोहब्बत की
यादें मोहब्बत की
Mukesh Kumar Sonkar
वक्त कितना भी बुरा हो,
वक्त कितना भी बुरा हो,
Dr. Man Mohan Krishna
साँप ...अब माफिक -ए -गिरगिट  हो गया है
साँप ...अब माफिक -ए -गिरगिट हो गया है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
Loading...