आ जाना मेरे पास प्रिये !
अभि कल तक तुमने यूं ही प्यार किया ,
अहो विलक्षणी ! तुने कैसा श्रृंगार किया,
रूपसी! तु मुस्कुराकर यों ही विसार ली,
पाँव , चमकती दुनिया में कैसे पसार ली ;
संस्कारों में क्या था कमी ,
कि ह्रदय का मैं नहीं था धनी ?
पर तडपता हुआ जब कोई छोड दे,
यौवनी, तुम्हारा ह्रदय तोड दे ,
तब आ जाना मेरे पास प्रिये,
मेरा ह्रदय विशाल खुला है,
खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए !
सुन्दरी , रुप की सागर हो तुम,
कमलिनी जितना खिलाओगी खिल जाएँगे,
अाज मेरी तुझे आवश्यकता कहाँ –
चाहनेवाले अनेक अवश्य मिल जाएँगे |
जब दर्पण तुम्हे डराने लगे,
यौवन भी दामन छुडाने लगे,
तब त्वरित मेरे पास आना प्रिये,
दृष्टि स्नेहिल रहेगी तुम्हारे लिए !
सौम्यता,शुद्धता होती है प्यार में,
पर प्यार शर्त्तों पे तुमने किया;
थोडा आँखें चार क्या हुयी संचरित,
बुझाने लगी धवल चाँदनी की दिया
जब अपनी दृष्टि में गिरने लगो;
उजाले में भी हो अंधेरी घिरने लगो,
नि:संकोच आ जाना पास मेरे प्रिये,
श्रद्धा से पुलकित,
दीपक आलोकित रहेगा तेरे लिये !
©
कवि आलोक पा