आज़ाद गज़ल
मुसीबतें तो मुझको ऐसे मिली
जैसे हो एक,के साथ एक फ्री।
हादसों ने हमेशा साथ ही दिया
हौसलों ने बस समझौता करी।
तक़दीर तरसा है तीमारदारी को
वक्त ने दिखाया है बेरहमी बड़ी ।
है क्या खता,और है सज़ा क्या
समझ भी अब तक आया नही ।
दिनोरात, सुबहोशाम हैं सताते
अज़ाब मानींद हो गई है ज़िंदगी ।
अश्क़ों को आगया गुस्सा अजय
आँखो से उसने है बगावत करी।
-अजय प्रसाद