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21 Feb 2021 · 1 min read

आज़ाद गज़ल

खुद को तू खुदगर्ज होने से बचा
बहती गंगा में हाथ धोने से बचा।
भले लोग समझे पत्थर दिल तुझे
मगर घड़ियाली रोना रोने से बचा।
देख खूबसूरती होती है इक बला
अपनी आँखों को खोने से बचा ।
सादगी भी सितम ढाती है कभी
खुद को ही शिकार, होने से बचा ।
दिलो-दिमाग के झगड़े में अजय
अपनी लुटिया को डुबोने से बचा।
-अजय प्रसाद

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