आह मन की व्यथा, एक सघन पीर है ।
आह मन की व्यथा, एक सघन पीर है,
दर्द का व्याकरण नैन का नीर है।
वेदना व्यक्त होती सतत् आह में
पाँव कंटक चुभे ज्यों कहीँ राह में
आह दुःसह नियति का चला तीर है
आह पीड़ित व्यथित द्रोपदी चीर है
आह मन की व्यथा एक सघन पीर है
दर्द का व्याकरण नैन का नीर है।
वाह चहका हुआ सा चकित चाव है,
एक लहर सा खुशी का मृदुल भाव है
वाह जादू जगाता जगत राग है
वाह बहका हुआ सा मगन फाग है
आह और वाह दोनों जरूरी यहाँ,
गर बदलनी यहाँ अपनी तकदीर है।
आह मन की व्यथा एक सघन पीर है,
दर्द का व्याकरण नैन का नीर है।
अनुराग दीक्षित