आहिस्ता चल
ऐ मन जरा आहिस्ता चल,
यूं बड़ी नदी में जलकुंभी सा
ना कूद कूद के आगे बढ़
ऐ मन जरा आहिस्ता चल,
मत बन बादल मतवाला
पा संग पवन तू डोल रहा
ऐ मन जरा आहिस्ता चल,
थाम विचार की उंगली तू
आंधी सा कौंधा करता है
कभी भाव की नौका में
भंवरों से उलझा करता है
ऐ मन जरा आहिस्ता चल,
तू मैं की लाठी छोड़ जरा
औ शांत चित्र से ध्यान लगा
तू प्रबल शक्ति इस काया की
क्यूँ व्यर्थ में सरपट दौड़ रहा
ऐ मन जरा आहिस्ता चल|