आस
ख़्वाहिशों के महल बनते रहते हैं ,
हालातो के झोंके इन्हें बिखराते रहते हैं ,
हसरतों की पतंगें ऊँची उड़़ाने लेती रहतीं हैं ,
हक़ीक़त के मांझे की धार डोर काटती रहती है ,
फिर भी न जाने क्यूँ ये जुनून कभी हार नही
मानता है ,
हर बार टूटने बिखरने पर भी ऊंची उड़ाने लेता
रहता है,
शायद कुछ कर गुजरने का जज़्बा ,
अब तक बाकी है ,
दिल में आस की वो सुलगती चिंगारी ,
अभी भी बाकी है।