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12 Jun 2023 · 1 min read

आस

थकी आंखें तकती रह गईं,
आशा की लौ धीमी पड़ गई,
सांसों की गति कहीं अटक गई,
पर तुम नहीं आए।
तुम तो चले अपने पथ पर,
पाया अपना लक्ष्य।
कृष्ण से द्वारकाधीश बने,
सिद्धार्थ से बुद्ध बने,
राम से मर्यादा पुरुषोत्तम बने।
पर मेरा क्या,
मैं तो अभी भी वहीं हूं,
छोड़ गये थे तुम जहां,
अधूरी रासलीला को,
अधूरी प्यासी पलकों को,
अधूरे विवाह के वचनों को।
सुन लो, तुम्हें आना होगा,
एक बार फिर –
केवल कृष्ण बनकर,
केवल सिद्धार्थ बनकर,
केवल राम बनकर,
मेरे लिए, केवल मेरे लिए।

Language: Hindi
1 Like · 269 Views
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