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6 Jun 2023 · 1 min read

यादों का सफ़र…

जीवन की शाम में मैं सवेरा तलाश रही थी
यादों के आईने में छुपे लम्हें तलाश रही थी

यादों के सफर में धूप खिली थी
गुनगुनी और ठंडी बयार चली थी

मैं इस धूप में छाँव तलाश रही थी
ढूंढ बरगद पीपल या पलाश रही थी

पीपल की छांव मुझे मिल गई थी
वहीं गहरी नींद में…मैं सो गई थी

सपनों में शामिल अब कुछ गलियांँ हो गई थी
जीवन की स्वर्णिम जहाँ आभा बिखर रही थी

यहाँ-वहाँ इस घर उस घर सखियों संग खेल रही थी
मेरी शैतानी से तंग माँ……बेलन लेकर दौड़ रही थी

खेल खेल में ना जाने दोपहर कब हुई थी
मेरी नजर के सामने अब मैं बड़ी हो गई थी

करती बड़ी है बातें बिटिया रीत दुनिया की जाने
हर जगह ये शब्द सुने जब….. दूजे घर आई थी

एक नया जीवन था मेरा और नये ……….कुछ सपने
कुछ अपनों को छोड़ा मिले थे फिर से नये जो अपने

बीत रहे थे ये भी पल कि शाम होने को आई थी
कर्तव्यों से मुक्त हुई तो.. रजनी भी घिर आई थी

किस्से कहानी हुए खत्म सब नैनों ने पलके उठाई
हुआ खत्म यादों का सफर मैं तारें गिनने लगी थी

संतोष सोनी
जोधपुर (राज.)

2 Likes · 2 Comments · 157 Views
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