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7 May 2017 · 1 min read

आस्तीनों में

सांप आस्तीनों में पल न पायेंगे
हमारे दुश्मन हमें छल न पायेंगे

मंजिल तक पहुंचना आसाँ नहीं
ये रस्ते सफर पे चल न पायेंगे

जितने घने हो चले हैं ये अँधेरे
चराग भी उतना जल न पायेंगे

ग़मों में आज इतना मुस्कुरा के
मुसीबतों का कोई हल न पायेंगे

रात और दिन इस तरह रोज़ ही
‘मिलन’सूरज सा ढल न पायेंगे !!

मिलन “मोनी”

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