आस्तीनों में
सांप आस्तीनों में पल न पायेंगे
हमारे दुश्मन हमें छल न पायेंगे
मंजिल तक पहुंचना आसाँ नहीं
ये रस्ते सफर पे चल न पायेंगे
जितने घने हो चले हैं ये अँधेरे
चराग भी उतना जल न पायेंगे
ग़मों में आज इतना मुस्कुरा के
मुसीबतों का कोई हल न पायेंगे
रात और दिन इस तरह रोज़ ही
‘मिलन’सूरज सा ढल न पायेंगे !!
मिलन “मोनी”