आसमान
हमारा आसमान
धरती से जुदा हो गया है।
आसमान!
तुम्हें क्या हो गया है?
तुम्हारा श्याम-सा तन
स्वच्छ मुख
धुएँ के बीच धुंधलाकर
धुआँ- धुआँ हो गया है।
निर्मल जल की जगह
तेजाब से
कौन निष्ठुर
मुंह तुम्हारा धो गया है।
बिंधा सा तन ले
विषैली गैसों के तीर सह
कचपचाते शहर में
तेरा कतरा-कतरा रो गया है।
पौधे रौपंते नन्हें हाथ
खेलना चाहते हैं
तेरे नीचे, तेरे साथ
कहाँ ढूँढे? तू खो गया है।
ये प्यारे निस्वार्थ दोस्त
लौटा देंगे तुझे
तेरी स्वच्छता, निश्छलता
मुझे विश्वास हो गया है।
अब एक बार झूम उठ
इनके साथ
नीचे झुक, चूम कह दे
मुझे, तुमसे प्यार हो गया है।
—प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)