आश भरी ऑखें
इस घटाटोप अंधियारे में
कभी तो पौ फटती होगी !
इस गुमनाम गलियारे में
कही तो लौ जलती होगी !!
इस घनघोर सी निराशा में
कही तो आशा बटती होगी !
ये हरदम छायी हताशा में
कभी तो निशा छटती होगी !!
ये बेरहम बेदर्द घड़ियां भी
कभी-कभी तो घटती होगी !
लब सिले फिर भी ऑखें
सब्र रखने को कहती होगी !!
चाहने उजाला अंधेरे में भी
ये ऑखें खुली रहती होगी !
रोशनी से ज्यादा खुशीयों में
ये ऑखें भी चमकती होगी !!
हर मंजर-नजारा दिल से
पहले ऑखें सहती होंगी !
हर ऑसू बहने से पहले
अंदर में ही ढहती होंगी !!
कभी ये चंचल ऑखें भी
सपने सुहाने संजोती होगी !
तो कभी ये सजल ऑखें
मोती गिरा के रोती होगी !!
ये ऑखें देखती ही नही
सुनती भी और है कहती !
जहाँ से सागर को नही
सागर से नदी है बहती !!
~०~
मौलिक एवं स्वरचित :रचना संख्या-०७
जीवनसवारो,मई २०२३.