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6 Sep 2021 · 1 min read

आशीष

मस्तक तेरा यूँ हीं ऊँचा रहे
हौसलों से बुलन्दी को छूता रहे

वक्त के दौर में तू थके ना कभी
ज़िन्दगी की राह में रुके ना कभी

चीरकर आँधियों को तू बढ़ता रहे
सीढ़ियाँ तू सफलता की चढ़ता रहे

मंज़िलों का शिखर तू चूमे सदा
बीच खुशियों के रह करके झूमे सदा

ग़म का साया भी डरकर के जाता रहे
प्रीत का दीप खुशियाँ सजाता रहे

आज देती है आशीष माता तेरी
बस रहे दुनिया आबाद हरदम तेरी

© डॉ० प्रतिभा ‘माही’ पंचकूला

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