आशीष
मस्तक तेरा यूँ हीं ऊँचा रहे
हौसलों से बुलन्दी को छूता रहे
वक्त के दौर में तू थके ना कभी
ज़िन्दगी की राह में रुके ना कभी
चीरकर आँधियों को तू बढ़ता रहे
सीढ़ियाँ तू सफलता की चढ़ता रहे
मंज़िलों का शिखर तू चूमे सदा
बीच खुशियों के रह करके झूमे सदा
ग़म का साया भी डरकर के जाता रहे
प्रीत का दीप खुशियाँ सजाता रहे
आज देती है आशीष माता तेरी
बस रहे दुनिया आबाद हरदम तेरी
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’ पंचकूला