आशियाना तुम्हारा
भटक रहे थे हम,
एक सुकून भरे आसरे के लिए,
तो उनके दिल का पता चला।
दिल तो हमारा तब टूटा,
जब उनके दिल में कोई और था,
एक ज़िद्दी मुसाफ़िर!
कि तुम्हारे ही ख़्वाब से,
शुरुआत होती है दिन की।
तुम्हारे ही ख़्वाब से,
ख़त्म होती है रात!
डर लगता है कि,
तुम्हारे ये ख़्वाब,
कहीं न लें मेरी जान!
तुम्हारा दिल है आसरा मेरा,
जिसको पाना मेरी क़िस्मत में नहीं!
वो प्यार ही क्या,
जिसमें इंतज़ार न हो।
वो इंतज़ार ही क्या,
जिसमें प्यार न हो।
है इंतज़ार मुझे अगले जन्म का,
जिसमें हो दोस्ताना हमारा!
मैं तो कहती ही हूं,
कभी तुम भी कहना कि “हां,
मेरा दिल है आशियाना तुम्हारा!”
✍️सृष्टि बंसल