आशिकी
बस आशिकी वही पुरानी सी हैं
बस जाती हैं तो नया फसाना बनकर
आती हैं प्यार रूपी बाढ़ सी लेकर
जाती हैं तो बाढ़ सी तहस नहस करके
आती हैं तो नूतन पत्तो दी रोनके लेकर
जाती हैं तो पतझड़ सी बिरानियाँ देकर
बस आशिकी वही पुरानी सी हैं
बस जाती हैं तो नया फसाना बनकर
आती हैं तो चिरागे दिवाली सी रोशन
जाती हैं तो अमावस की अंधेरी देकर
आती हैं गंगा की पवित्र धार बनकर
जाती हैं समुद्री तूफान सी बनकर
बस आशिकी वही पुरानी सी हैं
बस जाती हैं तो नया फसाना बनकर
आती हैं तो नित नए सुहाने सपने लेकर
जाती हैं तो सपने चूरचूर कर जाती है विरह देकर
आती है तो प्यार की बेशुमार दौलत लेकर
जाती हूँ तो रंक बना जाती हैं चैन लूटकर