“आशा-तृष्णा”
“आशा-तृष्णा”
जिन्दगी चार दिन की मेहमान रही,
मगर आशा-तृष्णा सदा जवान रही।
कब वक्त गुजरा पता ना चला,
चेहरे पे झुर्री आँखों में थकान रही।
“आशा-तृष्णा”
जिन्दगी चार दिन की मेहमान रही,
मगर आशा-तृष्णा सदा जवान रही।
कब वक्त गुजरा पता ना चला,
चेहरे पे झुर्री आँखों में थकान रही।